शनिवार, 10 मई 2014

बहुमूल्य सम्पत्ति हैं माँ -बाप ......................

जिंदगी में हम सब कुछ हासिल कर लेते हैं मगर फिर भी खुश नहीं होते हैं.......क्यूंकि खुशी बाँटने के लिए अपने नहीं होते है........हम बहुत दिखावा भी करते है लेकिन एक हल्का सा दर्द फिर भी हमारे दिल के इक कोने में रहता ही है, जो हमें बार बार अपनों के खो जाने का एहसास करवाता है ................
मुझे ये लिखते हुए कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं............
“कहने को तो सब कुछ है आज मेरे पास ये दुनियां कहती है , लेकिन वो क्या जाने इस गरीब का हाल क्या है” काश होता कोई पैमाना दिल को मापने का तो जानती राज मेरे  चेहरे के पीछे छुपे दर्द का”  
हमारी जिंदगी रिश्तों कि डोर से बंधी होती अगर एक भी धागा टूटता है तो बहुत दर्द होता है लेकिन इन रिश्तों के ताने बाने में भी एक रिश्ता ऐसा होता है जिससे सभी धागे बंधे होते हैं और अगर वो टूटता है तो जीवन में भूचाल सा आ जाता है ..............
जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ दुनिया की उस बहुमूल्य सम्पति का जो एक बार चली जाती है तो बापिस नहीं आती जब यह हमारे पास रहती है तो हम बहुत ही सुरक्षित महसूस करते है और बहुत समृद्ध होते हैं ...........
भगवान शिव एवं पार्वती के दोनों बेटों को जब ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए कहा जाता है तो कार्तिक मोर पर सवार होकर ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाते हैं जबकि श्री गणेश अपने माँ-बाप के चारों और परिक्रमा करते हैं और कहते हैं मेरे लिए तो आप ही संसार है.........
“कि चला था सुख ढूँढने मैं जहाँ में, भूल गया कि यह रास्ता है सिर्फ भटकने का”
 यह बात भी सत्य है ही कि हमें कितनी भी बड़ी बिपति आ जाये लेकिन माँ-बाप हमसे मुह नहीं मोड़ते लोग भले ही भयानक बीमारी के लगने पर छुआछूत करें लेकिन यह हमसे दूर नहीं जाते........इसलिए गर्व करो तो इस बात पर करो कि हम संसार में सबसे धनी हैं क्यूंकि हमारे माँ-बाप हमारे साथ हैं...........
“कि कह दो हुक्मरानों से की इस ग़लतफहमी न रहे कि हम गरीब हैं, अब भी इक चीज़ हमारे पास है जिससे हम अमीर हैं”

हमारे माँ –बाप तभी खुश  होते है जब हम खुश होते हैं, लेकिन अक्षर देखा गया है कि हम अपना सुख बाहर ढूँढ़ते हैं....
  प्रदीप सिंह। …………… काँगड़ा  हिमाचल प्रदेश 

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